Friday, May 20, 2011

jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 14

गज़ल

शहर तेरे है सांझ ढली
गले लग रोई तेरी हर गली
यादों में बार बार है सुलगें
हथेलियां तेरी मेंहदी लगी
तेल तो डाला चम्‍मच भर-भर
माथे की न ज्‍योति जली
ईश्‍क मेरे की सालगिरह पर
किसने भेजी ये काली कली
शिव को यार जब आये जलाने
सितम तेरे की ही बात चली

शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर






jasvinder dhani -Tribute to Punajbi Poets 18


गज़ल

मैं अधूरे गीत की ईक सतर हूँ
मैं न उठे कदमों का ईक सफ़र हूँ

ईश्‍क ने जो की हैं बरबादियां
मैं उन बरबादियों का शिखर हूँ

मैं तेरी महफि़ल का बुझा हुआ ईक चिराग
मैं तेरे होठों से गिरा जिक्र हूँ

ईक सिर्फ़ मौत ही है जिसका ईलाज
चार दिन की जि़दगी का फ़िक्र हूँ

जिसने मुझे देख कर भी न देखा
मैं उसकी आंखों की गूंगी नज़र हूँ

मैंने तो बस अपना ही चेहरा है देखा
मैं भी इस दुनिया का कैसा बशर हूँ

कल किसी ने सुना है "शिव" को कहते हुए
दर्द के लिए हुआ जहां में नशर हूँ

शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर  


jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 17


गज़ल

मुझे तो मेरे दोस्‍त 
मेरे ग़म ने मारा है।
है झूठी तेरी दोस्‍ती
के दम ने मारा है।

मूझे जेठ आषाढ़ से
कोई नहीं गिला
मेरे चमन को चैत की
शबनम ने मारा है।

अमावस की काली रात का
कोई नहीं कसूर
सागर को उसकी अपनी
पूनम ने मारा है।

यह कौन है जो मौत को
बदनाम कर रहा ?
इन्‍सान को इन्‍सान के
जन्‍म ने मारा है।

चढ़ा था जो सूरज
डूबना था उसे जरूर
कोई झूठ कह रहा है
कि पश्चिम ने मारा है।

माना कि मरे मित्रों
का ग़म भी है मारता
पर ज्‍यादा इस दिखावे के
मातम ने मारा है।

कातिल कोई दुश्‍मन नहीं
मैं ठीक हूँ बोलता
शिव को तो शिव के
अपने महिरम ने मारा है।

शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर  



jasvinder dhani -Tribute to Punjabi Poets 16

अज्ज आखां वारिस शाह नु


आज कहुँ मैं वारसशाह को कहीं कब्रों से तूं बोल
और आज किताबे इश्‍क का कोई अगला पन्‍ना खोल
           
ईक रोई थी बेटी पंजाब की, तूने लिख लिख विलाप किया
आज रोयें लाखों बेटियां कहें तुझे ओ वारसशाह
               
हे दर्दमंदों के हमदर्द उठ देख अपना पंजाब
बिछी हुई लाशें खेतों में और लहु से भरी चनाब
                    
पाँच पानियों में किसी ने जहर दिया मिला
और उस पानी ने धरती को है पानी दिया पिला
             
इस जरखेज़ जमीं के हर रोम से फूटा ज़हर
बालिस-बालिस क्रोध की और फुट-फुट चढ़ा है कहर
                  
फिर फ़ैल गयी वन वन ये ज़हरीली हवा
उसने हर इक बांस की बंसी दी नाग बना
     
पहले डंक मदारियों के मंतर हुए नाकाम
दूसरे डंक ने कर दिया हर किसी पे अपना काम
     
नाग बने सब लोग फिर सब डंक के संग
पलभर में पंजाब के नीले पड़ गए अंग
          
गलों से टूटे गीत फिर तकली से टूटे तांत
टोलियों से टूटी सहेलियां चरखे की कूक हुई शांत
               
सेजों समेत कश्तियाँ दरिया में दी डुबो
पीपल ने झूलो संग आज तोड़ा हे शाखों को
           
जहां बज़ती थी फूंक प्‍यार की वो बंसी गई है खो
रांझे के सब भाई आज भूले उस बंसी को
 
टप-टप टपके कबरों से लहु बसा है धरती में
प्‍यार की शहजादियॉं रोयें आज मज़ारों पे

आज सभी फ़रेबी बन गए हुस्‍न ईश्‍क के चोर
आज कहां से लाए ढूंढकर वारिसशाह ईक और
         
आज कहुं मैं वारिसशाह को कहीं कब्रों से तुं बोल
और आज किताबे ईश्‍क का कोई अगला पन्‍ना खोल

अमृता प्रीतम द्वारा लिखी कविता "अज्ज आखां वारिस शाह नु" का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रुपान्‍तर


                               Ajj Akhan Waris Shah nu (Hindi Rupantar)




                                   Ajj Akhan Waris Shah nu (Punjabi)







                                     

Wednesday, May 18, 2011

jasvinder dhani -Tribute to Punjabi Poets 15


गज़ल

रात गई कर तारा तारा
रोया दिल का दर्द बेचारा

रात को ऐसा जला है सीना
अंबर पार हुआ अंगारा

आंखें हुई आंसु आंसु
दिल का शीशा पारा पारा

अब तो मेरे दो ही साथी
एक कसक ईक आंसु खारा

मैं बुझे हुए दीये का धुआं
कैसे द्वार करुं उजियारा

मरना चाहा मौत न आई
मौत ने भी अब किया किनारा
  
न छोड़ मेरी नब्‍ज मसीहा
ग़म का बाद में कौन सहारा

शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर
 

Monday, May 9, 2011

jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 13


दिल

लकड़ी टूटे किड़-किड़ होए
शीशा टूटे तो तड़-तड़।

लोहा टूटे कड़-कड़ होए
पत्‍थर टूटे तो पड़-पड़ ।

शाबाशी दूँ आशिक के दिल को
वर्षों रहे सलामत।

जिसके टूटे आवाज़ न निकले
न किड़-किड़ न कड़-कड़ ।

पंजाबी कवि प्रोफेसर मोहन सिंह द्वारा लिखी कविता दिल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रुपान्‍तर

jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 12


कविता

अपना हुनर दिखाने को
ईश्‍वर ने हुस्‍न बनाया
देख हुस्‍न के तीखे जलवे
जोश ईश्‍क को आया
चला जब फिर ईश्‍क का जादू
दिल में कूदी मस्‍ती
यह मस्‍ती जब बोल उठी
तो तुफान कविता का आया ।

पंजाबी कवि प्रोफेसर मोहन सिंह द्वारा लिखी कविता कविता का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रुपान्‍तर