बूट पॉलिश
जिन्दगी के सुहाने सफर में मौंसमों की भांति परिवर्तन होते रहते हैं। सही मायने में परिवर्तन का नाम ही जिन्दगी है। इस सफर में आदमी कई अच्छे बुरे व्यक्तियों के सम्पर्क में आता है। उन व्यक्तियों की अच्छाई या बुराई इन्सान के मानसपटल पर एक छाप सी छोड़ जाती है। अगर जिन्दगी एक चलचित्र है तो इस चलचित्र में यह व्यक्ति अपना किरदार निभा अपनी एक छाप छोड़ जाता है।
मुझे हैदराबाद से मुम्बई जाना था। अचानक मेरा ध्यान मेरे जूतों पर गया और लगा कि मुम्बई की बारिश ने मेरे जूतों की वो हालत कर दी है कि वे अब मुझसे सदा के लिए मुक्ति चाहते हैं। समय कम था। माता जी को साथ ले मैं नज़दीक ही मार्केट में नए बूट खरीदने निकल पड़ा। मेरी माता जी ने अपनी तरफ से मुझे जूते लेकर दिए। बहुत ही अच्छे चमड़े के जूते। वैसे भी बारिश का मौसम मुम्बई में खत्म हो चुका था। इसलिए मैंने नये जूतों को पहनने का मन बना लिया था। अगर मुम्बई में कुछ दिन और बारिश का मौसम रहता तो कदापि अपने पुराने जूतों को मुक्त न करता। चमड़े के जूते होने के कारण शुरु में एक दो दिन तो मुझे जूतों ने काफी तंग किया। टखनों पर छाले पड़ गए। उगलियों में भी छाले पड़ गए। किन्तु तीन चार दिनों के बाद या तो जूतों को मुझ पर तरस आ गया या फिर मेरे पैर उनकी चुभन के आदी हो गए। बहरहाल मेरी जूतों से चुभन की तकलीफ दूर हो गई। पॉंच-छ: दिनों के बाद मुझे लगा कि इन्हें पालिस करवाना चाहिए। मालूम नहीं कितने ही पालिश वालों को छोड़ में इरोस सिनेमा के नीचे के एक बूट पालिश वाले से पालिश करवाने जा पहुँचा। वह पालिश वाला अपने आप में एक किरदार था। उसके सर पर टोपी ने मुझे ईदगाद कहानी के चरित्र हामिद की याद ताज़ा करा दी जो ईदगाह के लिए सर पर इसी प्रकार की टोपी पहन सभी मित्रों के साथ निकल पड़ता है। उसी प्रकार का चरित्र जिस प्रकार किसी अजायबघर में मिट्टी से बने किसी मोची का मॉड़ल बनाया गया हो। जूतों को प्रेम से पॉलिश करते हुए देख मुझे पहली बार लगा कि जीवित वस्तुओं से मोह या प्रेम के साथ-साथ बेजान वस्तुओं से भी इन्सान को मोह हो सकता है। प्यार से पॉलिश करते हुए वह बोला.. साहेब.. जूता बहुत अच्छा है.. खालिस चमड़े का है.. आजकल ऐसा जूता नहीं मिलता.. मैंने हूँ.. हॉं में जवाब दे दिया। और पूछने पर कि कितने पैसे हुए? वह बोला... साहेब आपसे ज्यादा नहीं.. सिर्फ पॉंच रुपए.. पूरे एक हफ्ते चलेगा पॉलिश.. अपन दूसरों के माफिक नहीं.. पैसा बराबर तो काम भी बराबर.. मैं पाँच रूपये दे अपने रास्ते पर चलता बना। चूंकि यह मेरा रोज़ का रास्ता था इसलिए उसके सामने से मेरा रोज़ आना जाना रहता था। मैं उधर से गुज़रते समय यह महसूस करता कि उसकी नज़र मेरे पर कम मेरे जूते पर बराबर पड़ जाती। बराबर एक हफ्ते के बाद मेरे कदम फिर उस बूट पॉलिश वाले की ओर मुड़ गए। नमस्ते साहेब.. मैंने बोला था न.. पॉलिश एक हफ्ते चलेगा.. मैं मुस्कुराया और अपना एक पैर उठा बूट पॉलिश के लिए उसकी पेटी पर रख दिया1 साहेब.. जूता बहुत अच्छा है.. खालिस चमड़े का है.. आजकल ऐसा जूता मिलता नहीं है.. मैं फिर हूँ हॉं करता गया। किन्तु आज मैं उससे पूछ ही बैठा.. भई कितने साल से यह काम कर रहे हो?
साहेब.. पूरे तीस साल
अच्छा .. पहले कहां बैठते थे?
साहेब अपून तीस साल से यहीं बैठता है.. यह पेटी देख रहे हो.. यही मेरा घर है..
सुनकर आश्चर्य हुआ.. तीस साल? तीस साल से यह व्यक्ति इरोस सिनेमा के नीचे बूट पॉलिश कर रहा है पता नहीं अनगिनत आम और विशेष व्यक्तियों के जूते पॉलिश कर चुका है। मैंने पूछा.. भैया तीस साल से यहीं पर बूटपॉलिश कर रहे हो.. शादी नहीं की?
नहीं साहेब अपून से कौन शादी करेगा.. वैसे अपून को कोई टेन्शन नहीं.. न घर..न बीवी.. न बच्चे..
मरेगा तो रोने वाला भी कोई नहीं.. अपून तो साहेब मर गऐला था.. ये तो बाम्बे हास्पिटल वालों ने बचा लिया। साहेब ये देखों सूईयों के निशान.. पूरा खून खराब हो गया था। पन अपन बच गएला.. मुझे वह यह नहीं समझा पाया कि उसको बीमारी क्या हुई थी। खैर मैंने 10 रुपये का नोट उसे दिया । वह बोला .. साहेब छुट्टा नहीं है क्या? मैंने कहाह.. नहीं मेरे पास तो छुट्टा नहीं है.. साहेब अपना पहला बोनी है न .. मेरे पास भी छुट्टा नहीं है.. खैर कोई बात नहीं साहेब.. बाद में दे देने का.. मैंने कहा नहीं यह दस रुपये रख लो तुम्हारा बोनी का टाईम है मैं अगली बार पैसे ले लूंगा1 ठीक है साहेब.. कह उसने लम्बा सा सलाम मारा1 मेरे इस जूते के कारण हम दोनो में एक अन्जान सा रिश्ता कायम हो गया। इसी प्रकार से उसके पास जाता किन्तु मुझे अपने बकाया पॉंच रूपये लेने का दिल न करता। मैं उस पॉंच रूपये को फिर से बकाया रख उसे पॉंच रूपये दे आता। मालूम नहीं क्यों मुझे उसका अपने आप से बातें करना, जूते की तारीफ करना बहुत अच्छा लगता। मैंने महसूस किया कि उसकी पारखी ऑंखें जूते हो पहचान गई थी। ये जूते तीन साल मुम्बई की बारिश को झेलते हुए और इस साल की भयानक न भूलने वाली बारिश को भी झेलते हुए इस महीने सेवानिवृत हुए हैं। उसके बाद मैंने एक जूता जो काफी महंगा था और 6 महीने पहले मुम्बई से ही लिया था पहनना शुरु किया है। इसकी उपरी चमक-दमक तो अच्छी है पॉलिश की भी जरूरत नहीं पड़ती। एक महीने में ही बचपन से जवानी का सफर पूरा कर अपनी पूरी झुर्रियों के साथ जीवन सफर पूरा करने के लिए बेताब है। वह तो मुझे एक महीने में मुक्त करने का संकेत दे चुका है। लेकिन मुझे तलाश है वैसे ही एक जोड़ी जूतों की, जिन्होंने मेरे साथ तीन साल हर हाल में बिताए और मेरा बूट पॉलिश वाले के साथ एक अन्जान से रिश्ता जोड़ खुद भी उसके चहेते बने रहे। चूंकि वर्तमान में इस जूने ने मेरा साथ बिना एक बार भी उस बूटपॉलिश वाले के पास गए छोड़ दिया है। मैंने कुछ समय के लिए अपना रास्ता बदल लिया है ताकि इस जूते को देख उस बूट पॉलिश वाले के मेरे पूराने जूतों की यादें धूमिल न हो। तलाश जारी है, भगवान ने चाहा तो फिर से पहले जैसा जूता खरीदते ही मेरे कदम अपने आप उस बूट पॉलिश वाले की और मुड़ जाएंगे।
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