चुप्पी
पूछे फूल से बुलबुल ए फूल
मुझे ये समझ न आये
क्यों फंसु मैं जाल में और तूं
हार गले का बन जाए
हंसकर बोला फूल, तुं एक जीभ को
कभी रोक न पाये
सौं जीभों के रहते भी मैं
रखता हूँ भेद छुपाए
पंजाबी कवि प्रोफेसर मोहन सिंह द्वारा लिखी कविता “चुप” का जसविन्दर धनी द्वारा हिन्दी रुपान्तर
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