Monday, May 9, 2011

jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 11


चुप्‍पी

पूछे फूल से बुलबुल ए फूल
मुझे ये समझ न आये
क्‍यों फंसु मैं जाल में और तूं
हार गले का बन जाए
हंसकर बोला फूल, तुं एक जीभ को
कभी रोक न पाये
सौं जीभों के रहते भी मैं
रखता हूँ भेद छुपाए

पंजाबी कवि प्रोफेसर मोहन सिंह द्वारा लिखी कविता चुपका जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रुपान्‍तर




No comments:

Post a Comment