Friday, May 20, 2011

jasvinder dhani -Tribute to Punajbi Poets 18


गज़ल

मैं अधूरे गीत की ईक सतर हूँ
मैं न उठे कदमों का ईक सफ़र हूँ

ईश्‍क ने जो की हैं बरबादियां
मैं उन बरबादियों का शिखर हूँ

मैं तेरी महफि़ल का बुझा हुआ ईक चिराग
मैं तेरे होठों से गिरा जिक्र हूँ

ईक सिर्फ़ मौत ही है जिसका ईलाज
चार दिन की जि़दगी का फ़िक्र हूँ

जिसने मुझे देख कर भी न देखा
मैं उसकी आंखों की गूंगी नज़र हूँ

मैंने तो बस अपना ही चेहरा है देखा
मैं भी इस दुनिया का कैसा बशर हूँ

कल किसी ने सुना है "शिव" को कहते हुए
दर्द के लिए हुआ जहां में नशर हूँ

शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर  


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