Friday, May 20, 2011

jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 17


गज़ल

मुझे तो मेरे दोस्‍त 
मेरे ग़म ने मारा है।
है झूठी तेरी दोस्‍ती
के दम ने मारा है।

मूझे जेठ आषाढ़ से
कोई नहीं गिला
मेरे चमन को चैत की
शबनम ने मारा है।

अमावस की काली रात का
कोई नहीं कसूर
सागर को उसकी अपनी
पूनम ने मारा है।

यह कौन है जो मौत को
बदनाम कर रहा ?
इन्‍सान को इन्‍सान के
जन्‍म ने मारा है।

चढ़ा था जो सूरज
डूबना था उसे जरूर
कोई झूठ कह रहा है
कि पश्चिम ने मारा है।

माना कि मरे मित्रों
का ग़म भी है मारता
पर ज्‍यादा इस दिखावे के
मातम ने मारा है।

कातिल कोई दुश्‍मन नहीं
मैं ठीक हूँ बोलता
शिव को तो शिव के
अपने महिरम ने मारा है।

शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर  



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