गज़ल
रात गई कर तारा तारा
रोया दिल का दर्द बेचारा
रात को ऐसा जला है सीना
अंबर पार हुआ अंगारा
आंखें हुई आंसु आंसु
दिल का शीशा पारा पारा
अब तो मेरे दो ही साथी
एक कसक ईक आंसु खारा
मैं बुझे हुए दीये का धुआं
कैसे द्वार करुं उजियारा
मरना चाहा मौत न आई
मौत ने भी अब किया किनारा
न छोड़ मेरी नब्ज मसीहा
ग़म का बाद में कौन सहारा
शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्दर धनी द्वारा हिन्दी रूपान्तर
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