Wednesday, May 18, 2011

jasvinder dhani -Tribute to Punjabi Poets 15


गज़ल

रात गई कर तारा तारा
रोया दिल का दर्द बेचारा

रात को ऐसा जला है सीना
अंबर पार हुआ अंगारा

आंखें हुई आंसु आंसु
दिल का शीशा पारा पारा

अब तो मेरे दो ही साथी
एक कसक ईक आंसु खारा

मैं बुझे हुए दीये का धुआं
कैसे द्वार करुं उजियारा

मरना चाहा मौत न आई
मौत ने भी अब किया किनारा
  
न छोड़ मेरी नब्‍ज मसीहा
ग़म का बाद में कौन सहारा

शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर
 

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