दिल
लकड़ी टूटे किड़-किड़ होए
शीशा टूटे तो तड़-तड़।
लोहा टूटे कड़-कड़ होए
पत्थर टूटे तो पड़-पड़ ।
शाबाशी दूँ आशिक के दिल को
वर्षों रहे सलामत।
जिसके टूटे आवाज़ न निकले
न किड़-किड़ न कड़-कड़ ।
पंजाबी कवि प्रोफेसर मोहन सिंह द्वारा लिखी कविता “दिल” का जसविन्दर धनी द्वारा हिन्दी रुपान्तर
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