Friday, May 20, 2011

jasvinder dhani -Tribute to Punjabi Poets 16

अज्ज आखां वारिस शाह नु


आज कहुँ मैं वारसशाह को कहीं कब्रों से तूं बोल
और आज किताबे इश्‍क का कोई अगला पन्‍ना खोल
           
ईक रोई थी बेटी पंजाब की, तूने लिख लिख विलाप किया
आज रोयें लाखों बेटियां कहें तुझे ओ वारसशाह
               
हे दर्दमंदों के हमदर्द उठ देख अपना पंजाब
बिछी हुई लाशें खेतों में और लहु से भरी चनाब
                    
पाँच पानियों में किसी ने जहर दिया मिला
और उस पानी ने धरती को है पानी दिया पिला
             
इस जरखेज़ जमीं के हर रोम से फूटा ज़हर
बालिस-बालिस क्रोध की और फुट-फुट चढ़ा है कहर
                  
फिर फ़ैल गयी वन वन ये ज़हरीली हवा
उसने हर इक बांस की बंसी दी नाग बना
     
पहले डंक मदारियों के मंतर हुए नाकाम
दूसरे डंक ने कर दिया हर किसी पे अपना काम
     
नाग बने सब लोग फिर सब डंक के संग
पलभर में पंजाब के नीले पड़ गए अंग
          
गलों से टूटे गीत फिर तकली से टूटे तांत
टोलियों से टूटी सहेलियां चरखे की कूक हुई शांत
               
सेजों समेत कश्तियाँ दरिया में दी डुबो
पीपल ने झूलो संग आज तोड़ा हे शाखों को
           
जहां बज़ती थी फूंक प्‍यार की वो बंसी गई है खो
रांझे के सब भाई आज भूले उस बंसी को
 
टप-टप टपके कबरों से लहु बसा है धरती में
प्‍यार की शहजादियॉं रोयें आज मज़ारों पे

आज सभी फ़रेबी बन गए हुस्‍न ईश्‍क के चोर
आज कहां से लाए ढूंढकर वारिसशाह ईक और
         
आज कहुं मैं वारिसशाह को कहीं कब्रों से तुं बोल
और आज किताबे ईश्‍क का कोई अगला पन्‍ना खोल

अमृता प्रीतम द्वारा लिखी कविता "अज्ज आखां वारिस शाह नु" का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रुपान्‍तर


                               Ajj Akhan Waris Shah nu (Hindi Rupantar)




                                   Ajj Akhan Waris Shah nu (Punjabi)







                                     

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