Saturday, April 30, 2011

jasvinder dhani - Mere apne vichaar 05

जीवन क्‍या है आज तक कोई समझ नहीं पाया। सबने अपने-अपने ढ़ंग से इसकी व्‍याख्‍या की है। महापुरुष, ऋषिमुनि, संत, महात्‍मा जीवन की व्‍याख्‍या अपने-अपने ज्ञान के अनुसार करते रहे हैं लेकिन मौत की  परिभाषा सबके लिए, हर छोटे-बड़े,  ज्ञानी- अज्ञानी,  धर्मी- अधर्मी,  पापी-तपस्‍वी सबके लिए एक ही है। यही सत्‍य है। 

समय ऐसे निकलता है जैसे बन्‍द मुट्ठी से रेत।  शायद ही कोई ऐसा व्‍यक्ति हो जो बीते हुए समय में कुछ न कर सकने का पश्‍चाताप न करता हो।  अक्‍सर हर व्‍यक्ति को कभी न कभी यह कहते सुना जाता है  कि अगर उस समय ऐसा न करता तो अच्‍छा होता। समय के साथ इन्‍सान को कई अनुभव होते है,  उसका बीता समय वापिस नहीं आता बल्कि उस समय से संबंधित उपदेश उसके पास रह जाते हैं दूसरों को देने के लिए।  अक्‍सर इस बात पर जोर दिया जाता है कि बुजुर्गों की बात मानों जिससे जीवन में विभिन्‍न परिस्थितियों का सामना करने की सीख  मिलती है। एक कहावत है कि आंवले का खाया एवं बुजुर्गों के कहे का स्‍वाद बाद में आता है। बचपन से मनुष्‍य के जीवन के हर क्षण उसके दिमाग में कैद होते चले जाते हैं। तकनीकी तौर पर मनुष्‍य के दिमाग में सूचनाओं को इकट्ठा रखने की अदभुत क्षमता होती है। कम्‍प्‍यूटर से भी तेज गति से कोई भी सूचना मनुष्‍य के मानस पटल पर क्षणों में आ जाती है। कभी-कभी किसी शान्‍त कोने में बैठकर अपने अतीत में खो जाना या अतीत के चलचित्र देखना सुखमय होता है ऐसे क्षणों में इन्‍सान अपने गुज़रे हुए वक्‍त का विश्‍लेषण करते हुए आने वाले समय के लिए अपने आप को तैयार करता है। कुछ स्थितियां ऐसी होती हें जिनका वास्‍तविकता में अनुभव नहीं किया जा सकता है, मात्र कल्‍पना की जा सकती है। कभी-कभी गहरी नींद में इन्‍सान कोई भयानक सपना देखता है तो उस स्थिति को वह सपनों में पूरी तरह अनुभव करता है। जैसे कभी-कभी सपनों में मनुष्‍य अपने आपको किसी ऊंची इमारत से गिरता हुआ पाता है, एकदम जमीन पर गिरने से पूर्व उसकी आंख खुल जाती है। वास्‍तविकता में अपने आप को ठीक-ठाक देखते हुए उसे जो सुख का अनुभव होता है वह ब्‍यान नहीं कर सकता। उसने सपने में उन क्षणों को महसूस किया होता है जो वास्‍तविकता में उसके अन्तिम  क्षण हो सकते थे। अच्‍छे बुरे अनुभवों का मिश्रण ही जीवन है और इसे किसी पड़ाव पर आकर थमना ही होता है।

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