संदेश
कल नये जब वर्ष का
सूरज सुनहरी चढ़ेगा
मेरी रातों का तेरे
नाम संदेशा पढ़ेगा
और वफ़ा का एक हरफ़
तेरी हथेली पर ला जड़ेगा
तूं वफ़ा का हरफ़ जो अपनी
धूप में गर पढ़ सकी
तो तेरा सूरज मेरी
रातों को सज़दा करेगा
और रोज तेरी याद मे
एक गीत सूली चढ़ेगा।
पर वफ़ा का हरफ़ ये
मुश्किल है इतना पढ़ना
रातों का सफ़र कर पूरा
कोई सब्र वाला ही पढे़गा
आंखों में सूरज बीज कर
फिर अर्थ इसके करेगा।
तूं वफ़ा का यह हरफ़
पढ़ने की कोशिश तो करना
गर पढ़ सकी तो ईश्क तेरे
कदमों में आ गिरेगा
और तारों का ताज़
तेरे शीश पे ला जड़ेगा
गर वफा का ये हरफ़
तूं कहीं न पढ़ सकी
तो फिर मुहब्बत पर कोई
एतबार कैसे करेगा।
फिर धूप में इस हरफ़ को पढ़ने से
हर ज़माना डरेगा।
फिर धूप में इस हरफ़ को पढ़ने से
हर ज़माना डरेगा।
दुनिया के आशिक बैठकर
तुझे खत जवाबी लिखेंगे
पुछेंगे इस हरफ की तकदीर
का क्या बनेगा।
पुछेंगे इस हरफ को
धरती पर कौन पढ़ेगा।
दुनिया के आशिकों को भी
उत्तर तूं जो न दे सकी
तो दोष मेरी मौत का
तेरे सर ज़माना मड़ेगा
और संसार मेरी मौत का
शोक संदेशा पड़ेगा।
शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्य संग्रह’’ में से ‘’सुनेहा’’ कविता का जसविन्दर धनी द्वारा हिन्दी रूपान्तर
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