Saturday, April 30, 2011

jasvinder dhani - Mere apne vichar 04

हर इन्‍सान अपने कार्य में प्रगति चाहता है, अपने कार्य के क्षेत्र में आशानुरुप प्रगति दिखाई देने पर ईन्‍सान को बल मिलता है।  इसके साथ-साथ काम करने के भी दो तरीके हैं, पहला सिर्फ नाम के लिए काम, दूसरा किए गए काम से नाम। पहले वाले में भी काम होता है, लेकिन सही मायने में काम का तरीका दूसरा वाला है।  हर  व्‍यक्ति में अपने कुछ गुण होते हैं और कुछ गुण वह किसी का अनुसरण करते हुए प्राप्‍त करता है। लेकिन उसका संपूर्ण व्‍यक्तित्‍व अपने गुणों में निखार लाने से ही उभरता है। सुघड़ व्‍यक्ति अभावों में भी अपनी मंजिल तक पहुँचने में सफल होता है। 

महाराजा रणजीत सिंह के दरबार में दो महिलाएं एक घी के कनस्‍तर का झगड़ा लिए फरियाद लेकर  आयीं। एक का कहना था कि यह उसकी बकरी के दूध का घी है और दूसरी ने उसे अपनी बकरी के दूध का घी होने  का  दावा किया।  महाराजा ने  अपनी सूझबूझ से उन्‍हें एक-एक लोटा पानी देकर हाथ मुँह धोकर लोटे सहित दरबार में उनके समक्ष आने का हुक्‍म दिया। दरबार में हाजि़र होने पर पहली महिला ने बताया कि उसने महाराजा के आदेशानुसार हाथ मुँह धोया है और अभी भी उसके लोटे में कुछ पानी शेष है।   दूसरी महिला से पुछने पर उसने उत्‍तर दिया कि पानी बहुत कम था इस कारण वह केवल हाथ ही धो सकी है। महाराजा ने फैंसला पहली   महिला के पक्ष में सुनाया।      

बचपन में कभी-कभी जब किसी के साथ मैं बनिये की दुकान पर जाता था तो मुझे यह देखकर आश्‍चर्य होता था कि बनिया पैकिंग के एवं पुराने लिफाफों के कोरे कागजों को सलीके से काटकर एक पुराने परीक्षा पैड पर लगाकर उसी पर अपना हिसाब-किताब लिखता था। हैरानी होती थी कि क्‍या यह नई कापी या नये कागज़ों का प्रयोग नहीं कर सकता। लेकिन आज समझ में आती है उसकी उन कागजों को व्‍यर्थ न करने की भावना और याद आता है मुहावरा "आम के आम गुठलियों के दाम"

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