Saturday, April 30, 2011

jasvinder dhani - Maa 03

माँ ठंडी छांव  (माँवां ठडियां छांवा )

आकाश में एक तारा टिमटिमाता है
हो न हो मेरा ज़रूर उससे
कुछ न कुछ नाता है ।

कहीं वह मेरी माँ तो नहीं?
हां शायद वो मेरी माँ  ही है।

क्‍योंकि जब भी मैं उसे देखुं
मेरे मन को सुकून आता है

कुछ समय के लिए दिल मेरा
माँ के ग़म को भूल जाता है।

चमक अपनी से रह-रह कर वो
माँ का अक्‍श  दिखाता है

कह रहा हो माँ -बेटे का
जन्‍म-जन्‍म का नाता है।





                                 This Poem is dedicated to my beloved Mother 


                                             
                              Audio visuals for this poem will be uploaded shortly      












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