Thursday, April 28, 2011

jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 09



              गज़ल

मेरे नामुराद ईश्‍क का कौन सा पड़ाव है आया
मुझे अपने आप पर रह-रह कर तरस आया

मेरे दिल मासूम का कुछ हाल है इस तरह
सूली पर बेगुनाह जैसे है मरीयम का जाया

एक वक्‍त था कि अपने सब लगते थे पराये
एक वक्‍त है खुद अपने लिए हो गया हूँ पराया

मेरे दिल के दर्द का भी बिल्‍कुल भेद न पाया
ज्‍यों-ज्‍यों सहलाया उसको और उभर कर आया

चाहते हुए भी अपने आप को रोने से रोक न पाया
अपना ही जब हाल मैंने अपने आप को सुनाया

कहते हैं यार शिव को तो मुद्दत हो गई है गुज़रे
पर रोज आकर मिलता है आज भी उसका साया


शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर 





Audio visual for this Gazal will be uploaded shortly 



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