Saturday, April 30, 2011

jasvinder dhani-Mere apne vichaar 03


गुरु बिना ज्ञान नहीं.. ये शब्‍द कई पुस्‍तकों में, महापुरुषों की वाणी में, प्रवचन देते हुए साधु-संतों के मुख से सुने जा सकते हैं। इस संसार में सब कुछ उपलब्‍ध है। लेकिन उस तक पहुंचने का मार्ग दिखाने वाला कोई होना चाहिए और यह भी जरुरी है वह व्‍यक्ति उस मार्ग को जानता हो और उस पर गुज़र चुका हो। उस कार्य विशेष के लिए वही व्‍यक्ति आपका गुरु या मार्गदर्शक हो सकता है। अगर आप में क्षमता है, इच्‍छाशक्ति है तो मार्ग आप स्‍वयं भी ढूंढ सकते हैं किन्‍तु गुरु के मार्गदर्शन से आपका समय बच सकता है, बिना भटके कम समय में आप अपनी मंज़िल तक पहुंच सकते हैं। देखा जाए तो इन्‍सान की उम्र बहुत कम होती है वह अपना पूरा जोर लगाने के बाद भी किसी एक क्षेत्र में महारत हासिल कर सकता है। लक्ष्‍यहीन व्‍यक्ति के लिए यह जीवन काफी लम्‍बा हो सकता है क्‍योंकि उसका कोई उद्देशय नहीं होता है। खाना-पीना, जीवनयापन ही उसकी दिनचर्या होती है। किसी विशिष्‍ट लक्ष्‍य को लेकर चलते हुए व्‍यक्ति के लिए समय ऐसे निकलता है, जैसे बन्‍द मुट्ठी से रेत। मेरा मानना है कि गलत रास्‍ते पर तेज भागने से सही रास्‍ते पर धीरे-धीरे चलना ज्‍यादा अच्‍छा है। 

मेरे एक मित्र जो फिल्‍म निर्माता हैं। उनकी कही बात मुझे कई बार याद आती है कि जिन्‍दगी ईश्‍वर की दी हुई नेमत है इसका भरपूर उपयोग करना चाहिए। इस संसार में कोई भी काम असंभव नहीं है यदि इन्‍सान में इच्‍छाशक्ति हो। एक दिन टी.वी पर एक कार्यक्रम देखते हुए जिसमें छोटे-छोटे बच्‍चों की विशेष प्रतिभाओं को दिखाया जा रहा था। मैंने अपने छोटे लड़के से पुछा कि बेटा, आपमें क्‍या टेलेन्‍ट है। उसने कहा कि पापा टेलेन्‍ट का तो मुझे पता नहीं, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि मैं कुछ भी कर सकता हूं। इस प्रकार के सकारात्‍मक भाव ही इन्‍सान को प्रगति के मार्ग पर ले जाते हुए मंजि़ल तक पहुंचा देते हैं।

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