एक लम्बे रास्ते पर चल रहे व्यक्ति के लिए मील का एक पत्थर उसे यह एहसास दिलाता रहता है कि उसका रास्ता कट रहा है। हालाकि उसे यह नहीं मालूम कि वह कब तक चल पाएगा, लेकिन हर मील का पत्थर उसमें एक नई स्फूर्ति पैदा करता है। वह फिर नये जोश से अपने मंजिल की ओर बढ़ा चला जाता है। दिन वही रहते हैं,दिनचर्या वही रहती है। लेकिन नये वर्ष के आगमन से व्यक्ति में नया जोश आ जाता है। पिछले वर्ष के कटु अनुभवों को भूलता हुआ सुखद जीवन की आशा लिए वह नये वर्ष का स्वागत करता है। वक्त का चक्र चलता रहता है। जाते हुए वक्त की पीठ पर वह सब लिखा होता है कि इन्सान क्या-क्या कर सकता था, उसने क्या-क्या नहीं किया। इन्सान सोचता है कि काश यही सब कुछ वक्त ने अपनी पीठ पर न लिखकर अपने सीने पर लिखा होता तो कितना अच्छा होता।
ऐसा होता तो अच्छा होता.. वैसा होता तो अच्छा होता.. यदि देखा जाए, तो कोई भी व्यक्ति संतुष्ट नहीं है। गरीब सोचता है कि धनवान सुखी है, धनवान कुछ और सोचता है। मेरे एक मित्र का कहा मुझे आज भी याद आता है कि यार, यह भगवान भी अजीब चीज़ है। जिसे भूख देता है उसे खाना नहीं देता और जिसे खाना देता है उसे साथ में एक दो बीमारियॉं दे देता है।
प्रकृति का नियम है। उतार है तो चढ़ाव भी है, दिन है तो रात भी। इसी प्रकार सुख दुख भी जीवन के दो पहलू हैं, अगर दुख न हो तो सुख का अहसास कैसे होता।
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