ममता का सागर
माँ शब्द है इतना मीठा
ऐसी कहाँ... मिले मिठास
बार-बार देखुँ मैं माँ को
फिर भी बुझे न मन की प्यास
माँ मेरी ममता का सागर
हुआ धन्य मैं जीवन पाकर
दिये संस्कार मुझे तुने इतने
जीता हूँ मैं सर उठाकर
नहीं करूँ गलती जीवन मे
खींची तुने लक्ष्मण रेखा
मार्ग तेरे पर चला हूँ अब तक
कभी इधर-उधर नहीं देखा
साया सदा बना रहे सर पर
पूजा रब्ब को सज़दा कर कर
जब भी संकट तुझ पे आया
अंधकार में खुद को पाया
तेरी हंसी में सुनता हूँ मैं
हंसी मेरी की झनकार
तेरी साँसों से चलता है
मेरी खुशियों का संसार
तुझ बिन जीवन कैसा होगा
सोच न पाउँ मैं उस पल को
बिछुड़ गई है तू अब मुझसे
कैसे समझाउँ मैं दिल को
लगे चोट जख़्म भर जाए
पतझड़ बाद बसंत है आए
जाने वाले तूं चला जाये
जीवन भर तेरी याद सताये
This Poem is dedicated to my beloved Mother
Audio visuals for this poem will be uploaded shortly
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