गज़ल
मुझे तेरा शबाब ले डूबा
रंग गोरा गुलाब ले डूबा
दिल में डर था कहीं न ले डूबे
ले ही डूबा, जनाब ले डूबा
वक्त जब भी मिला है फ़र्ज़ों से
चेहरे तेरे की किताब में डूबा
कितनी बीती है कितनी बाकी है
मुझे ये हिसाब ले डूबा
"शिव" को एक ग़म पर ही था भरोसा
ग़म का कोरा जवाब ले डूबा
शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्दर धनी द्वारा हिन्दी रूपान्तर (पेज-241)
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