Friday, May 20, 2011

jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 14

गज़ल

शहर तेरे है सांझ ढली
गले लग रोई तेरी हर गली
यादों में बार बार है सुलगें
हथेलियां तेरी मेंहदी लगी
तेल तो डाला चम्‍मच भर-भर
माथे की न ज्‍योति जली
ईश्‍क मेरे की सालगिरह पर
किसने भेजी ये काली कली
शिव को यार जब आये जलाने
सितम तेरे की ही बात चली

शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर






jasvinder dhani -Tribute to Punajbi Poets 18


गज़ल

मैं अधूरे गीत की ईक सतर हूँ
मैं न उठे कदमों का ईक सफ़र हूँ

ईश्‍क ने जो की हैं बरबादियां
मैं उन बरबादियों का शिखर हूँ

मैं तेरी महफि़ल का बुझा हुआ ईक चिराग
मैं तेरे होठों से गिरा जिक्र हूँ

ईक सिर्फ़ मौत ही है जिसका ईलाज
चार दिन की जि़दगी का फ़िक्र हूँ

जिसने मुझे देख कर भी न देखा
मैं उसकी आंखों की गूंगी नज़र हूँ

मैंने तो बस अपना ही चेहरा है देखा
मैं भी इस दुनिया का कैसा बशर हूँ

कल किसी ने सुना है "शिव" को कहते हुए
दर्द के लिए हुआ जहां में नशर हूँ

शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर  


jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 17


गज़ल

मुझे तो मेरे दोस्‍त 
मेरे ग़म ने मारा है।
है झूठी तेरी दोस्‍ती
के दम ने मारा है।

मूझे जेठ आषाढ़ से
कोई नहीं गिला
मेरे चमन को चैत की
शबनम ने मारा है।

अमावस की काली रात का
कोई नहीं कसूर
सागर को उसकी अपनी
पूनम ने मारा है।

यह कौन है जो मौत को
बदनाम कर रहा ?
इन्‍सान को इन्‍सान के
जन्‍म ने मारा है।

चढ़ा था जो सूरज
डूबना था उसे जरूर
कोई झूठ कह रहा है
कि पश्चिम ने मारा है।

माना कि मरे मित्रों
का ग़म भी है मारता
पर ज्‍यादा इस दिखावे के
मातम ने मारा है।

कातिल कोई दुश्‍मन नहीं
मैं ठीक हूँ बोलता
शिव को तो शिव के
अपने महिरम ने मारा है।

शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर  



jasvinder dhani -Tribute to Punjabi Poets 16

अज्ज आखां वारिस शाह नु


आज कहुँ मैं वारसशाह को कहीं कब्रों से तूं बोल
और आज किताबे इश्‍क का कोई अगला पन्‍ना खोल
           
ईक रोई थी बेटी पंजाब की, तूने लिख लिख विलाप किया
आज रोयें लाखों बेटियां कहें तुझे ओ वारसशाह
               
हे दर्दमंदों के हमदर्द उठ देख अपना पंजाब
बिछी हुई लाशें खेतों में और लहु से भरी चनाब
                    
पाँच पानियों में किसी ने जहर दिया मिला
और उस पानी ने धरती को है पानी दिया पिला
             
इस जरखेज़ जमीं के हर रोम से फूटा ज़हर
बालिस-बालिस क्रोध की और फुट-फुट चढ़ा है कहर
                  
फिर फ़ैल गयी वन वन ये ज़हरीली हवा
उसने हर इक बांस की बंसी दी नाग बना
     
पहले डंक मदारियों के मंतर हुए नाकाम
दूसरे डंक ने कर दिया हर किसी पे अपना काम
     
नाग बने सब लोग फिर सब डंक के संग
पलभर में पंजाब के नीले पड़ गए अंग
          
गलों से टूटे गीत फिर तकली से टूटे तांत
टोलियों से टूटी सहेलियां चरखे की कूक हुई शांत
               
सेजों समेत कश्तियाँ दरिया में दी डुबो
पीपल ने झूलो संग आज तोड़ा हे शाखों को
           
जहां बज़ती थी फूंक प्‍यार की वो बंसी गई है खो
रांझे के सब भाई आज भूले उस बंसी को
 
टप-टप टपके कबरों से लहु बसा है धरती में
प्‍यार की शहजादियॉं रोयें आज मज़ारों पे

आज सभी फ़रेबी बन गए हुस्‍न ईश्‍क के चोर
आज कहां से लाए ढूंढकर वारिसशाह ईक और
         
आज कहुं मैं वारिसशाह को कहीं कब्रों से तुं बोल
और आज किताबे ईश्‍क का कोई अगला पन्‍ना खोल

अमृता प्रीतम द्वारा लिखी कविता "अज्ज आखां वारिस शाह नु" का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रुपान्‍तर


                               Ajj Akhan Waris Shah nu (Hindi Rupantar)




                                   Ajj Akhan Waris Shah nu (Punjabi)







                                     

Wednesday, May 18, 2011

jasvinder dhani -Tribute to Punjabi Poets 15


गज़ल

रात गई कर तारा तारा
रोया दिल का दर्द बेचारा

रात को ऐसा जला है सीना
अंबर पार हुआ अंगारा

आंखें हुई आंसु आंसु
दिल का शीशा पारा पारा

अब तो मेरे दो ही साथी
एक कसक ईक आंसु खारा

मैं बुझे हुए दीये का धुआं
कैसे द्वार करुं उजियारा

मरना चाहा मौत न आई
मौत ने भी अब किया किनारा
  
न छोड़ मेरी नब्‍ज मसीहा
ग़म का बाद में कौन सहारा

शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर
 

Monday, May 9, 2011

jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 13


दिल

लकड़ी टूटे किड़-किड़ होए
शीशा टूटे तो तड़-तड़।

लोहा टूटे कड़-कड़ होए
पत्‍थर टूटे तो पड़-पड़ ।

शाबाशी दूँ आशिक के दिल को
वर्षों रहे सलामत।

जिसके टूटे आवाज़ न निकले
न किड़-किड़ न कड़-कड़ ।

पंजाबी कवि प्रोफेसर मोहन सिंह द्वारा लिखी कविता दिल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रुपान्‍तर

jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 12


कविता

अपना हुनर दिखाने को
ईश्‍वर ने हुस्‍न बनाया
देख हुस्‍न के तीखे जलवे
जोश ईश्‍क को आया
चला जब फिर ईश्‍क का जादू
दिल में कूदी मस्‍ती
यह मस्‍ती जब बोल उठी
तो तुफान कविता का आया ।

पंजाबी कवि प्रोफेसर मोहन सिंह द्वारा लिखी कविता कविता का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रुपान्‍तर


jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 11


चुप्‍पी

पूछे फूल से बुलबुल ए फूल
मुझे ये समझ न आये
क्‍यों फंसु मैं जाल में और तूं
हार गले का बन जाए
हंसकर बोला फूल, तुं एक जीभ को
कभी रोक न पाये
सौं जीभों के रहते भी मैं
रखता हूँ भेद छुपाए

पंजाबी कवि प्रोफेसर मोहन सिंह द्वारा लिखी कविता चुपका जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रुपान्‍तर




Sunday, May 8, 2011

jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 10


माँ 

माँ  जैसा घना वृक्ष
मुझे और नज़र न आए
जिसकी छांव ले उधार
ईश्‍वर ने स्‍वर्ग बनाए
बाकी सब दुनिया पौधे
जड़ सूखे मुरझाएं
पर फूलों के मुरझाने से
यह वृक्ष सूख जाए।      




प्रोफेसर मोहन सिंह द्वारा पंजाबी में लिखी कविता  " माँ "
  का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रुपान्‍तर

                                                                              








Tuesday, May 3, 2011

jasvinder dhani - Boot Polish


बूट पॉलिश

     जिन्‍दगी के सुहाने सफर में मौंसमों की भांति परिवर्तन होते रहते हैं। सही मायने में परिवर्तन का नाम ही जिन्‍दगी है। इस सफर में आदमी कई अच्‍छे बुरे व्‍यक्तियों के सम्‍पर्क में आता है। उन व्‍यक्तियों की अच्‍छाई या बुराई इन्‍सान के मानसपटल पर एक छाप सी छोड़ जाती है। अगर जिन्‍दगी एक चलचित्र है तो इस चलचित्र में यह व्‍यक्ति अपना किरदार निभा अपनी एक छाप छोड़ जाता है।

     मुझे हैदराबाद से मुम्‍बई जाना था। अचानक मेरा ध्‍यान मेरे जूतों पर गया और लगा कि मुम्‍बई की बारिश ने मेरे जूतों की वो हालत कर दी है कि वे अब मुझसे सदा के लिए मुक्ति चाहते हैं। समय कम था। माता जी को साथ ले मैं नज़दीक ही मार्केट में नए बूट खरीदने निकल पड़ा। मेरी माता जी ने अपनी तरफ से मुझे जूते लेकर दिए। बहुत ही अच्‍छे चमड़े के जूते। वैसे भी बारिश का मौसम मुम्‍बई में खत्‍म हो चुका था। इसलिए मैंने नये जूतों को पहनने का मन बना लिया था। अगर मुम्‍बई में कुछ दिन और बारिश का मौसम रहता तो कदापि अपने पुराने जूतों को मुक्‍त न करता। चमड़े के जूते होने के कारण शुरु में एक दो दिन तो मुझे जूतों ने काफी तंग किया। टखनों पर छाले पड़ गए। उगलियों में भी छाले पड़ गए। किन्‍तु तीन चार दिनों के बाद या तो जूतों को मुझ पर तरस आ गया या फिर मेरे पैर उनकी चुभन के आदी हो गए। बहरहाल मेरी जूतों से चुभन की तकलीफ दूर हो गई। पॉंच-छ: दिनों के बाद मुझे लगा कि इन्‍हें पालिस करवाना चाहिए। मालूम नहीं कितने ही पालिश वालों को छोड़ में इरोस सिनेमा के नीचे के एक बूट पालिश वाले से पालिश करवाने जा पहुँचा। वह पालिश वाला अपने आप में एक किरदार था। उसके सर पर टोपी ने मुझे ईदगाद कहानी के चरित्र हामिद की याद ताज़ा करा दी जो ईदगाह के लिए सर पर इसी प्रकार की टोपी पहन सभी मित्रों के साथ निकल पड़ता है। उसी प्रकार का चरित्र जिस प्रकार किसी अजायबघर में मिट्टी से बने किसी मोची का मॉड़ल बनाया गया हो। जूतों को प्रेम से पॉलिश करते हुए देख मुझे पहली बार लगा कि जीवित वस्‍तुओं से मोह या प्रेम के साथ-साथ बेजान वस्‍तुओं से भी इन्‍सान को मोह हो सकता है। प्‍यार से पॉलिश करते हुए वह बोला.. साहेब.. जूता बहुत अच्‍छा है.. खालिस चमड़े का है.. आजकल ऐसा जूता नहीं मिलता.. मैंने हूँ.. हॉं में जवाब दे दिया। और पूछने पर कि कितने पैसे हुए वह बोला... साहेब आपसे ज्‍यादा नहीं.. सिर्फ पॉंच रुपए.. पूरे एक हफ्ते चलेगा पॉलिश.. अपन दूसरों के माफिक नहीं.. पैसा बराबर तो काम भी बराबर.. मैं पाँच रूपये दे अपने रास्‍ते पर चलता बना। चूंकि यह मेरा रोज़ का रास्‍ता था इसलिए उसके सामने से मेरा रोज़ आना जाना रहता था। मैं उधर से गुज़रते समय यह महसूस करता कि उसकी नज़र मेरे पर कम मेरे जूते पर बराबर पड़ जाती। बराबर एक हफ्ते के बाद मेरे कदम फिर उस बूट पॉलिश वाले की ओर मुड़ गए। नमस्‍ते साहेब.. मैंने बोला था न.. पॉलिश एक हफ्ते चलेगा.. मैं मुस्‍कुराया और अपना एक पैर उठा बूट पॉलिश के लिए उसकी पेटी पर रख दिया1 साहेब.. जूता बहुत अच्‍छा है.. खालिस चमड़े का है.. आजकल ऐसा जूता मिलता नहीं है.. मैं फिर हूँ हॉं करता गया। किन्‍तु आज मैं उससे पूछ ही बैठा.. भई कितने साल से यह काम कर रहे हो?
साहेब.. पूरे तीस साल
अच्‍छा .. पहले कहां बैठते थे?

साहेब अपून तीस साल से यहीं बैठता है.. यह पेटी देख रहे हो.. यही मेरा घर है..
सुनकर आश्‍चर्य हुआ.. तीस साल?  तीस साल से यह व्‍यक्ति इरोस सिनेमा के नीचे बूट पॉलिश कर रहा है पता नहीं अनगिनत आम और विशेष व्‍यक्तियों के जूते पॉलिश कर चुका है। मैंने पूछा.. भैया तीस साल से यहीं पर बूटपॉलिश कर रहे हो.. शादी नहीं की?   
नहीं साहेब अपून से कौन शादी करेगा.. वैसे अपून को कोई टेन्‍शन नहीं.. न घर..न बीवी.. न बच्‍चे..
मरेगा तो रोने वाला भी कोई नहीं.. अपून तो साहेब मर गऐला था.. ये तो बाम्‍बे हास्पिटल वालों ने बचा लिया। साहेब ये देखों सूईयों के निशान.. पूरा खून खराब हो गया था। पन अपन बच गएला.. मुझे वह यह नहीं समझा पाया कि उसको बीमारी क्‍या हुई थी। खैर मैंने 10 रुपये का नोट उसे दिया । वह बोला .. साहेब छुट्टा नहीं है क्‍या? मैंने कहाह.. नहीं मेरे पास तो छुट्टा नहीं है.. साहेब अपना पहला बोनी है न .. मेरे पास भी छुट्टा नहीं है.. खैर कोई बात नहीं साहेब.. बाद में दे देने का.. मैंने कहा नहीं यह दस रुपये रख लो तुम्‍हारा बोनी का टाईम है मैं अगली बार पैसे ले लूंगा1 ठीक है साहेब.. कह उसने लम्‍बा सा सलाम मारा1 मेरे इस जूते के कारण हम दोनो में एक अन्‍जान सा रिश्‍ता कायम हो गया। इसी प्रकार से उसके पास जाता किन्‍तु मुझे अपने बकाया पॉंच रूपये लेने का दिल न करता। मैं उस पॉंच रूपये को फिर से बकाया रख उसे पॉंच रूपये दे आता। मालूम नहीं क्‍यों मुझे उसका अपने आप से बातें करना, जूते की तारीफ करना बहुत अच्‍छा लगता। मैंने महसूस किया कि उसकी पारखी ऑंखें जूते हो पहचान गई थी। ये जूते तीन साल मुम्‍बई की बारिश को झेलते हुए और इस साल की भयानक न भूलने वाली बारिश को भी झेलते हुए इस महीने सेवानिवृत हुए हैं। उसके बाद मैंने एक जूता जो काफी महंगा था और 6 महीने पहले मुम्‍बई से ही लिया था पहनना शुरु किया है। इसकी उपरी चमक-दमक तो अच्‍छी है पॉलिश की भी जरूरत नहीं पड़ती। एक महीने में ही बचपन से जवानी का सफर पूरा कर अपनी पूरी झुर्रियों के साथ जीवन सफर पूरा करने के लिए बेताब है। वह तो मुझे एक महीने में मुक्‍त करने का संकेत दे चुका है। लेकिन मुझे तलाश है वैसे ही एक जोड़ी जूतों की, जिन्‍होंने मेरे साथ तीन साल हर हाल में बिताए और मेरा बूट पॉलिश वाले के साथ एक अन्‍जान से रिश्‍ता जोड़ खुद भी उसके चहेते बने रहे। चूंकि वर्तमान में इस जूने ने मेरा साथ बिना एक बार भी उस बूटपॉलिश वाले के पास गए छोड़ दिया है। मैंने कुछ समय के लिए अपना रास्‍ता बदल लिया है ताकि इस जूते को देख उस बूट पॉलिश वाले के मेरे पूराने जूतों की यादें धूमिल न हो। तलाश जारी है, भगवान ने चाहा तो फिर से पहले जैसा जूता खरीदते ही मेरे कदम अपने आप उस बूट पॉलिश वाले की और मुड़ जाएंगे।

Saturday, April 30, 2011

jasvinder dhani - Mere apne vichaar 05

जीवन क्‍या है आज तक कोई समझ नहीं पाया। सबने अपने-अपने ढ़ंग से इसकी व्‍याख्‍या की है। महापुरुष, ऋषिमुनि, संत, महात्‍मा जीवन की व्‍याख्‍या अपने-अपने ज्ञान के अनुसार करते रहे हैं लेकिन मौत की  परिभाषा सबके लिए, हर छोटे-बड़े,  ज्ञानी- अज्ञानी,  धर्मी- अधर्मी,  पापी-तपस्‍वी सबके लिए एक ही है। यही सत्‍य है। 

समय ऐसे निकलता है जैसे बन्‍द मुट्ठी से रेत।  शायद ही कोई ऐसा व्‍यक्ति हो जो बीते हुए समय में कुछ न कर सकने का पश्‍चाताप न करता हो।  अक्‍सर हर व्‍यक्ति को कभी न कभी यह कहते सुना जाता है  कि अगर उस समय ऐसा न करता तो अच्‍छा होता। समय के साथ इन्‍सान को कई अनुभव होते है,  उसका बीता समय वापिस नहीं आता बल्कि उस समय से संबंधित उपदेश उसके पास रह जाते हैं दूसरों को देने के लिए।  अक्‍सर इस बात पर जोर दिया जाता है कि बुजुर्गों की बात मानों जिससे जीवन में विभिन्‍न परिस्थितियों का सामना करने की सीख  मिलती है। एक कहावत है कि आंवले का खाया एवं बुजुर्गों के कहे का स्‍वाद बाद में आता है। बचपन से मनुष्‍य के जीवन के हर क्षण उसके दिमाग में कैद होते चले जाते हैं। तकनीकी तौर पर मनुष्‍य के दिमाग में सूचनाओं को इकट्ठा रखने की अदभुत क्षमता होती है। कम्‍प्‍यूटर से भी तेज गति से कोई भी सूचना मनुष्‍य के मानस पटल पर क्षणों में आ जाती है। कभी-कभी किसी शान्‍त कोने में बैठकर अपने अतीत में खो जाना या अतीत के चलचित्र देखना सुखमय होता है ऐसे क्षणों में इन्‍सान अपने गुज़रे हुए वक्‍त का विश्‍लेषण करते हुए आने वाले समय के लिए अपने आप को तैयार करता है। कुछ स्थितियां ऐसी होती हें जिनका वास्‍तविकता में अनुभव नहीं किया जा सकता है, मात्र कल्‍पना की जा सकती है। कभी-कभी गहरी नींद में इन्‍सान कोई भयानक सपना देखता है तो उस स्थिति को वह सपनों में पूरी तरह अनुभव करता है। जैसे कभी-कभी सपनों में मनुष्‍य अपने आपको किसी ऊंची इमारत से गिरता हुआ पाता है, एकदम जमीन पर गिरने से पूर्व उसकी आंख खुल जाती है। वास्‍तविकता में अपने आप को ठीक-ठाक देखते हुए उसे जो सुख का अनुभव होता है वह ब्‍यान नहीं कर सकता। उसने सपने में उन क्षणों को महसूस किया होता है जो वास्‍तविकता में उसके अन्तिम  क्षण हो सकते थे। अच्‍छे बुरे अनुभवों का मिश्रण ही जीवन है और इसे किसी पड़ाव पर आकर थमना ही होता है।

jasvinder dhani - Mere apne vichar 04

हर इन्‍सान अपने कार्य में प्रगति चाहता है, अपने कार्य के क्षेत्र में आशानुरुप प्रगति दिखाई देने पर ईन्‍सान को बल मिलता है।  इसके साथ-साथ काम करने के भी दो तरीके हैं, पहला सिर्फ नाम के लिए काम, दूसरा किए गए काम से नाम। पहले वाले में भी काम होता है, लेकिन सही मायने में काम का तरीका दूसरा वाला है।  हर  व्‍यक्ति में अपने कुछ गुण होते हैं और कुछ गुण वह किसी का अनुसरण करते हुए प्राप्‍त करता है। लेकिन उसका संपूर्ण व्‍यक्तित्‍व अपने गुणों में निखार लाने से ही उभरता है। सुघड़ व्‍यक्ति अभावों में भी अपनी मंजिल तक पहुँचने में सफल होता है। 

महाराजा रणजीत सिंह के दरबार में दो महिलाएं एक घी के कनस्‍तर का झगड़ा लिए फरियाद लेकर  आयीं। एक का कहना था कि यह उसकी बकरी के दूध का घी है और दूसरी ने उसे अपनी बकरी के दूध का घी होने  का  दावा किया।  महाराजा ने  अपनी सूझबूझ से उन्‍हें एक-एक लोटा पानी देकर हाथ मुँह धोकर लोटे सहित दरबार में उनके समक्ष आने का हुक्‍म दिया। दरबार में हाजि़र होने पर पहली महिला ने बताया कि उसने महाराजा के आदेशानुसार हाथ मुँह धोया है और अभी भी उसके लोटे में कुछ पानी शेष है।   दूसरी महिला से पुछने पर उसने उत्‍तर दिया कि पानी बहुत कम था इस कारण वह केवल हाथ ही धो सकी है। महाराजा ने फैंसला पहली   महिला के पक्ष में सुनाया।      

बचपन में कभी-कभी जब किसी के साथ मैं बनिये की दुकान पर जाता था तो मुझे यह देखकर आश्‍चर्य होता था कि बनिया पैकिंग के एवं पुराने लिफाफों के कोरे कागजों को सलीके से काटकर एक पुराने परीक्षा पैड पर लगाकर उसी पर अपना हिसाब-किताब लिखता था। हैरानी होती थी कि क्‍या यह नई कापी या नये कागज़ों का प्रयोग नहीं कर सकता। लेकिन आज समझ में आती है उसकी उन कागजों को व्‍यर्थ न करने की भावना और याद आता है मुहावरा "आम के आम गुठलियों के दाम"

jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 10


               गज़ल 
मेरा सूरज डूबा है तेरी शाम नहीं है
तेरे सर पर सेहरा है ईल्‍ज़ाम नहीं है।  

इतना है कि मेरे लहु ने वृक्ष सींचा है
क्‍या हुआ अगर पत्तों पर मेरा नाम नहीं है।  

मेरे हत्‍यारे ने गंगा में लहु धोया है
गंगा के पानी में कुहराम  नहीं है ।  

मस्जिद के कहने पर काज़ी के फ़तवे पर
अल्‍लाह को कत्‍ल करना ईस्‍लाम नहीं है।

यह सज़दे नहीं माँगता सर माँगता है
यारों का संदेशा है ईलहाम नहीं  है।      

मेरी चिन्‍ता न करना मन हो तो वापिस हो जाना
हम रुहों को तो बस आराम नहीं है ।







                           Audio visual for this Gazal will be uploaded shortly 









jasvinder dhani - Maa 04



माँ तूं है कहां ?  
 
माँ तूं है कहां ?
रातों को सपनों में तो तूं मेरे साथ ही रहती है।
न जाने क्‍यों सुबह की किरणों में तूं ओझल हो जाती है।।
बचपन में तुझसे जो मैं आंख मिचौली करता था।
कहीं मेरी उस शैतानी का तूं बदला तो नहीं चुकाती  है ।।





    
                              This Poem is dedicated to my beloved Mother


                            Audio visuals for this poem will be uploaded shortly





jasvinder dhani - Maa 03

माँ ठंडी छांव  (माँवां ठडियां छांवा )

आकाश में एक तारा टिमटिमाता है
हो न हो मेरा ज़रूर उससे
कुछ न कुछ नाता है ।

कहीं वह मेरी माँ तो नहीं?
हां शायद वो मेरी माँ  ही है।

क्‍योंकि जब भी मैं उसे देखुं
मेरे मन को सुकून आता है

कुछ समय के लिए दिल मेरा
माँ के ग़म को भूल जाता है।

चमक अपनी से रह-रह कर वो
माँ का अक्‍श  दिखाता है

कह रहा हो माँ -बेटे का
जन्‍म-जन्‍म का नाता है।





                                 This Poem is dedicated to my beloved Mother 


                                             
                              Audio visuals for this poem will be uploaded shortly      












jasvinder dhani-Mere apne vichaar 03


गुरु बिना ज्ञान नहीं.. ये शब्‍द कई पुस्‍तकों में, महापुरुषों की वाणी में, प्रवचन देते हुए साधु-संतों के मुख से सुने जा सकते हैं। इस संसार में सब कुछ उपलब्‍ध है। लेकिन उस तक पहुंचने का मार्ग दिखाने वाला कोई होना चाहिए और यह भी जरुरी है वह व्‍यक्ति उस मार्ग को जानता हो और उस पर गुज़र चुका हो। उस कार्य विशेष के लिए वही व्‍यक्ति आपका गुरु या मार्गदर्शक हो सकता है। अगर आप में क्षमता है, इच्‍छाशक्ति है तो मार्ग आप स्‍वयं भी ढूंढ सकते हैं किन्‍तु गुरु के मार्गदर्शन से आपका समय बच सकता है, बिना भटके कम समय में आप अपनी मंज़िल तक पहुंच सकते हैं। देखा जाए तो इन्‍सान की उम्र बहुत कम होती है वह अपना पूरा जोर लगाने के बाद भी किसी एक क्षेत्र में महारत हासिल कर सकता है। लक्ष्‍यहीन व्‍यक्ति के लिए यह जीवन काफी लम्‍बा हो सकता है क्‍योंकि उसका कोई उद्देशय नहीं होता है। खाना-पीना, जीवनयापन ही उसकी दिनचर्या होती है। किसी विशिष्‍ट लक्ष्‍य को लेकर चलते हुए व्‍यक्ति के लिए समय ऐसे निकलता है, जैसे बन्‍द मुट्ठी से रेत। मेरा मानना है कि गलत रास्‍ते पर तेज भागने से सही रास्‍ते पर धीरे-धीरे चलना ज्‍यादा अच्‍छा है। 

मेरे एक मित्र जो फिल्‍म निर्माता हैं। उनकी कही बात मुझे कई बार याद आती है कि जिन्‍दगी ईश्‍वर की दी हुई नेमत है इसका भरपूर उपयोग करना चाहिए। इस संसार में कोई भी काम असंभव नहीं है यदि इन्‍सान में इच्‍छाशक्ति हो। एक दिन टी.वी पर एक कार्यक्रम देखते हुए जिसमें छोटे-छोटे बच्‍चों की विशेष प्रतिभाओं को दिखाया जा रहा था। मैंने अपने छोटे लड़के से पुछा कि बेटा, आपमें क्‍या टेलेन्‍ट है। उसने कहा कि पापा टेलेन्‍ट का तो मुझे पता नहीं, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि मैं कुछ भी कर सकता हूं। इस प्रकार के सकारात्‍मक भाव ही इन्‍सान को प्रगति के मार्ग पर ले जाते हुए मंजि़ल तक पहुंचा देते हैं।

jasvinder dhani-Mere apne vichaar 02


इन्‍सान जन्‍म लेता है इस दुनियाँ में। उसके इर्द-गिर्द बन्‍धनों के घेरे खींचे जाते हैं। उसे कोई सुध नहीं होती। और यह सब उसकी इच्‍छा से नहीं होता1 उसका नामकरण किया जाता है1 राम, रहीम, सतनाम या फिर सोलोमन अर्थात धर्म का पहला बन्‍धन। ऐसा नहीं है कि एक बन्‍धन से उसको छुटकारा मिल जाय। अभी तो शुरुआत हुई है अभी तो उसे यह बताया जायगा कि वह ब्राह्मण है या क्षत्रिय, सिया है या सुन्‍नी, अकाली है कि निरंकारी, प्रोटेस्‍टंट है या केथोलिक  इन सभी बन्‍धनों के साथ जुड़ी है उसकी भाषा, मातृभाषा या माँ बोली। भाषा को हम बन्‍धन नहीं मानते हैं क्‍योंकि यह उसे दुनियाँ  में अपने जीवन की शुरुआत करने की राह दिखाती है। प्रगति की ओर ले जाने का मार्ग प्रशस्‍त करती है। अब शुरुआत होती है संबंधों की.. सगे संबंध.. एक ही माता पिता की संतान। सगे भाई-बहनों में भी विचारों में अन्‍तर हो सकता है, अपनी इच्‍छा के अनुरूप नहीं।

शिक्षा शुरु हुई। .. यहाँ से इन्‍सान के संबंध अपने इच्‍छा से शुरु होते हैं। विद्यालय वह पवित्र स्‍थान है जहाँ कोई भी धर्म-जाति का भेदभाव किये बिना शिक्षा दी जाती है। इन्‍सान के संबंध बनते हैं, मित्रता होती है समान विचारों वाले इन्‍सान के साथ। .. कोई बन्‍धन नहीं, खुली छूट..जिसके साथ विचार मिले मित्रता हो गई। संबंध भाईयों से कम नहीं। स्‍कूल या कॉलेज की मित्रता जीवन भर बनी रहती है इस प्रकार विद्यालय ही ईट्टों को वह भट्ठा है जहां राष्‍ट्ररूपी भवन को बनाने वाले इट्टें बनती हैं एवं सिंकती है। राष्‍ट्रीय एकता की भावना पनपती है तो शिक्षा के केन्‍द्र विद्यालय से।

मातृभाषा एक नदी है। जिस प्रकार छोटी-बड़ी सभी नदियाँ अपना रास्‍ता तय करते हुए समुद्र में जा मिलती है और बिना किसी भिन्‍नता के समुद्र में इनका संगम हो जाता है। समुद्र सभी नदियों की एकता की पहचान है इसी प्रकार हिन्‍दी भी हमारे समुद्ररुपी भारत की एकता की पहचान है जो अलग-अलग भाषा भाषियों को एक सुत्र में बांधने का कार्य करती है।

jasvinder dhani-Mere apne vichaar 01


एक लम्‍बे रास्‍ते पर चल रहे व्‍यक्ति के लिए मील का एक पत्‍थर उसे यह एहसास दिलाता रहता है कि उसका रास्‍ता कट रहा है। हालाकि उसे यह नहीं मालूम कि वह कब तक चल पाएगा, लेकिन हर मील का पत्‍थर उसमें एक नई स्‍फूर्ति पैदा करता है। वह फिर नये जोश से अपने मंजिल की ओर बढ़ा चला जाता है। दिन वही रहते हैं,दिनचर्या वही रहती है। लेकिन नये वर्ष के आगमन से व्‍‍यक्ति में नया जोश आ जाता है। पिछले वर्ष के कटु अनुभवों को भूलता हुआ सुखद जीवन की आशा लिए वह नये वर्ष का स्‍वागत करता है। वक्‍त का चक्र चलता रहता है। जाते हुए वक्‍त की पीठ पर वह सब लिखा होता है कि इन्‍सान क्‍या-क्‍या कर सकता था, उसने क्‍या-क्‍या नहीं किया। इन्‍सान सोचता है कि काश यही सब कुछ वक्‍त ने अपनी पीठ पर न लिखकर अपने सीने पर लिखा होता तो कितना अच्‍छा होता। 

ऐसा होता तो अच्‍छा होता.. वैसा होता तो अच्‍छा होता.. यदि देखा जाए, तो कोई भी व्‍यक्ति संतुष्‍ट नहीं है। गरीब सोचता है कि धनवान सुखी है, धनवान कुछ और सोचता है। मेरे एक मित्र का कहा मुझे आज भी याद आता है कि यार, यह भगवान भी अजीब चीज़ है। जिसे भूख देता है उसे खाना नहीं देता और जिसे खाना देता है उसे साथ में एक दो बीमारियॉं दे देता है।

प्रकृति का नियम है। उतार है तो चढ़ाव भी है, दिन है तो रात भी। इसी प्रकार सुख दुख भी जीवन के दो पहलू हैं, अगर दुख न हो तो सुख का अहसास कैसे होता।



jasvinder dhani - Maa 02





ममता का सागर



माँ शब्‍द है इतना मीठा
ऐसी कहाँ... मिले मिठास
बार-बार देखुँ मैं माँ को
फिर भी बुझे न मन की प्‍यास

माँ मेरी ममता का सागर
हुआ धन्‍य मैं जीवन पाकर
दिये संस्‍कार मुझे तुने इतने
जीता हूँ मैं सर उठाकर

नहीं करूँ गलती जीवन मे
खींची तुने लक्ष्‍मण रेखा
मार्ग तेरे पर चला हूँ अब तक
कभी इधर-उधर नहीं देखा

साया सदा बना रहे सर पर
पूजा रब्‍ब को सज़दा कर कर
जब भी संकट तुझ पे आया
अंधकार में खुद को पाया

तेरी हंसी में सुनता हूँ मैं
हंसी मेरी की झनकार
तेरी साँसों से चलता है
मेरी खुशियों का संसार 

तुझ बिन जीवन कैसा होगा
सोच न पाउँ मैं उस पल को
बिछुड़ गई है तू अब मुझसे 
कैसे समझाउँ मैं दिल को

लगे चोट जख्‍़म भर जाए
पतझड़ बाद बसंत है आए
जाने वाले तूं चला जाये
जीवन भर तेरी याद सताये


                This Poem is dedicated to my beloved Mother  

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jasvinder dhani - Maa 01


   मुझे ऐसा क्‍यों लगता है ?

हे माँ, तुम इस दुनिया से जा चुकी हो।
मगर, मुझे ऐसा क्‍यों लगता है ?
कि तुम हो, यहीं कहीं हो।

हे माँ, तुम पंचतत्‍व में लीन हो चुकी हो।
मगर, मुझे ऐसा क्‍यों लगता है ?
कि तुम अभी भी, इस संसार में उसी रूप में हो।

हे माँ, लाख बुलाने पर भी तुम शायद न आ सकोगी।
मगर, मुझे ऐसा क्‍यों लगता है ?
कि मैं तुम्‍हें जब भी पुकारूंगा, तुम आ जाओगी।

हे माँ, तुम मुझसे बिछुड़ चुकी हो ।
मगर मुझे ऐसा क्‍यों लगता है?
कि तुम अब भी मेरे पास हो, अब भी मेरे पास हो।

हे माँ, मुझे तुमसे बिछुड़ने को अहसास क्‍यों नहीं होता
मैंने इन्‍हीं हाथों से तेरा अन्तिम संस्‍कार किया।
मैंने इन्‍हीं हाथों से तेरी अस्थियों को जल प्रवाहित किया।
मगर मुझे ऐसा क्‍यों लगता है ?
तुम हो, अभी भी हो, अभी भी हो...

हाँ  माँ, तुम हो... अभी भी हो।
अगर सॉंसों के चलने को जीवन कहते हैं।
तो माँ, तुम जीवीत हो, मेरी साँसों में
    अगर दिल के धड़कने को जीवन कहते हैं।
    तो माँ, तुम जीवीत हो, मेरे दिल की हर धड़कन में।
    अगर रगों में लहु के दौड़ने को जीवन कहते हैं।
    तो माँ, तुम जीवीत हो, मेरे लहु की हर बूंद में
तुम हो, अभी भी हो, मेरी साँसों में, मेरे लहु में, मेरी धड़कन में
मुझे हर पल यह अहसास दिलाते हुए
कि तुम हो.. तुम हो.. तुम अभी भी मेरे पास हो।


                  This Poem is dedicated to my beloved Mother 


                
         
            

Thursday, April 28, 2011

jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 09



              गज़ल

मेरे नामुराद ईश्‍क का कौन सा पड़ाव है आया
मुझे अपने आप पर रह-रह कर तरस आया

मेरे दिल मासूम का कुछ हाल है इस तरह
सूली पर बेगुनाह जैसे है मरीयम का जाया

एक वक्‍त था कि अपने सब लगते थे पराये
एक वक्‍त है खुद अपने लिए हो गया हूँ पराया

मेरे दिल के दर्द का भी बिल्‍कुल भेद न पाया
ज्‍यों-ज्‍यों सहलाया उसको और उभर कर आया

चाहते हुए भी अपने आप को रोने से रोक न पाया
अपना ही जब हाल मैंने अपने आप को सुनाया

कहते हैं यार शिव को तो मुद्दत हो गई है गुज़रे
पर रोज आकर मिलता है आज भी उसका साया


शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर 





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jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 08



     संदेश

कल नये जब वर्ष का
सूरज सुनहरी चढ़ेगा
मेरी रातों का तेरे
नाम संदेशा पढ़ेगा
और वफ़ा का एक हरफ़
तेरी हथेली पर ला जड़ेगा

तूं वफ़ा का हरफ़ जो अपनी
धूप में गर पढ़ सकी
तो तेरा सूरज मेरी
रातों को सज़दा करेगा
और रोज तेरी याद मे
एक गीत सूली चढ़ेगा।

पर वफ़ा का हरफ़ ये
मुश्‍किल है इतना पढ़ना
रातों का सफ़र कर पूरा
कोई सब्र वाला ही पढे़गा
आंखों में सूरज बीज कर
फिर अर्थ इसके करेगा।

तूं वफ़ा का यह हरफ़
पढ़ने की कोशिश तो करना
गर पढ़ सकी तो ईश्‍क तेरे
कदमों में आ गिरेगा
और तारों का ताज़ 
तेरे शीश पे ला जड़ेगा

गर वफा का ये हरफ़
तूं कहीं न पढ़ सकी
तो फिर मुहब्‍बत पर कोई
एतबार कैसे करेगा। 
फिर धूप में इस हरफ़ को पढ़ने से
हर ज़माना डरेगा।

दुनिया के आशिक बैठकर
तुझे खत जवाबी लिखेंगे
पुछेंगे इस हरफ की तकदीर
का क्‍या बनेगा।
पुछेंगे इस हरफ को
धरती पर कौन पढ़ेगा।

दुनिया के आशिकों को भी
उत्तर तूं जो न दे सकी
तो दोष मेरी मौत का
तेरे सर ज़माना मड़ेगा
और संसार मेरी मौत का
शोक संदेशा पड़ेगा।


शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से ‘’सुनेहा’’ कविता का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर 

                                 
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jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 07


            गज़ल

तूं विदा हुआ मेरे दिल पे उदासी छा गई
टीस दिल की बूंद बनकर आखों में आ गई

दूर तक नज़र मेरी निशां तेरे चुमती रही
फिर निशां तेरे वो रास्‍ते की मिट्टी खा गई

जाने से पहले थी तेरे यौवन पर बहार
जाने के बाद देखा कि हर कली मुरझा गई

उस दिन के बाद न बोला न देखा ही हमने
यह जुबां खामोश हुई और नज़र पत्‍थरा गई
  
इश्‍क को सौगात जो तूं दर्द की था दे गया
आखिर वो ही दर्द ‘’शिव’’ को धीरे-धीरे ले गया

शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर 




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jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 06


    गज़ल

रोग बनकर रह गया
प्‍यार तेरे शहर का। 
मैंने मसीहा देखा है
बीमार तेरे शहर का।। 

इसकी गलियों ने मेरी
चढ़ती जवानी खा ली।
क्‍युं करुं न दोस्‍त
सत्‍कार तेरे शहर का।।  
 
शहर तेरे में कदर नहीं
लोगों को सच्‍चे प्‍यार की।
रात को खुलता है हर
बाज़ार तेरे शहर का।।

फिर मंज़‍िल के लिए
एक कदम भी न बढ़ाया मैंने।
इस तरह चुभा फिर कोई
शूल तेरे शहर का ।।

मरने के बाद भी जहॉं
कफ़न न हुआ नसीब।
कौन पागल अब करे
एतबार तेरे शहर का।।

यहां तो मेरी लाश भी
नीलाम कर दी गई।
कर्ज़ न उतर सका फिर भी
ए यार तेरे शहर का।।

शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर 




jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 05


         गज़ल

आ गई तरकीब हमको ग़म उठाने की,
धीरे-धीरे रोकर दिल को मनाने की ।

अच्‍छा हुआ जो तूं पराया हो गया
चिन्‍ता ही हुई खत्‍म तुझको अपनाने की ।

मर तो जाऊं पर डरता हूं ऐ जीने वालो
धरती भी बिकती है मोल शमशानों की ।

न दो मुझे और सांसें उधार मेरे दोस्‍तो
हिम्‍मत नहीं है अब लेकर फिर लौटाने की ।

न करो ‘’शिव’’ की उदासी का इलाज
रोने की मरज़ी है आज इस दीवाने की।


शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर 

         


                             

                     

jasvinder dhani - Tribute to Punjabi Poets 04


        गज़ल

मुझे तेरा शबाब ले डूबा
रंग गोरा गुलाब ले डूबा

दिल में डर था कहीं न ले डूबे
ले ही डूबा, जनाब ले डूबा

वक्‍त जब भी मिला है फ़र्ज़ों से
चेहरे तेरे की किताब में डूबा

कितनी बीती है कितनी बाकी है
मुझे ये हिसाब ले डूबा

"शिव" को एक ग़म पर ही  था भरोसा
ग़म का कोरा जवाब ले डूबा

शिवकुमार बटालवी द्वारा पंजाबी में लिख ‘’संपूर्ण काव्‍य संग्रह’’ में से एक गज़ल का जसविन्‍दर धनी द्वारा हिन्‍दी रूपान्‍तर (पेज-241)